बंद करे

पर्यटन

पर्यटन स्थल

नरसिंहगढ़ शहर

jalmandir

शहर करीब 300 साल पुराना है इसकी दीवान परसराम द्वारा 1681 में स्थापना की गई थी । शहर में सुंदर झील है जिसमें पुराना किला परिलक्षित होता है और महल मे अभी भी संस्थापक के नाम दिखाई देते है । यह शहर भोपाल से 83 किलोमीटर की दूरी पर है ।

शहर मे शिव मंदिर है जिसे टोपिला महादेव के रूप में जाना जाता है – शरद महीनों में यह जगह बेहद खूबसूरत और सुंदर हो जाती है । वनस्पति के साथ कवर पहाड़ियों और पहाड़ियों की ढलान नीचे छोटी नदियों के साथ, हरे भरे घास में कालीन के साथ बैजनाथ महादेव मंदिर के ऊपर से सुखद पैनोरमा, पूर्ण पारदर्शक पानी की झीलों के साथ, बहुत ही आकर्षक है ।

 

श्यामजी साँका मंदिर-नरसिंहगढ़

श्यामजी साँका

साँका पार्वती नदी के पास स्थित एक छोटा सा गांव है यह राजगढ़ राज्य का तहसील मुख्यालय था, यह कोटरा से 5 किमी दूर है। माघ माह मे हर साल यहां एक मेला आयोजित किया जाता है और यह प्रसिद्ध मंदिर 16-17वी शताब्दी में राजा संग्राम सिंह (श्याम सिंह) की स्मृति मे पत्नी भाग्यवती द्वारा बनाया गया था । यहा राजा हाजी वली की एक मुगल सैनिक के साथ हुई मुठभेड़ में मौत हो गई थी । यह मंदिर राज्य सरकार द्वारा संरक्षित है। । यह मालवी और राजस्थानी प्रभाव को दर्शाती है दीवार पर सुंदर चित्र है, सुंदर और अच्छी तरह से नक्काशीदार पत्थर और ईंटे को मंदिर के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया गया।

 

जालपा माता मंदिर-राजगढ़

जालपा माता

यह सुंदर मंदिर राजगढ़ से सिर्फ 4 किलोमीटर दूर है । यह ऊँची पहाड़ी पर है और ऊपर से शहर का एक सुरम्य दृश्य देख सकते हैं। यह घने जंगल मे पौधों की विभिन्न किस्मे है। भक्त नवरात्रि के मौसम में अलग-अलग हिस्सों से यह आते हैं। राजग़ढ पर करीब 550 साल पहले भील राजाओं का राज हुआ करता था। उनहीं के दौरान पहा़डी पर एक चबूतरे पर मातारानी की स्थापना की गई थी। तब से लेकर वर्ष वर्षांतरों तक पहा़डी पर चबूतरे पर मातारानी विराजमान रही। बाद में यहां पर प्रशासन के सहयोग से मंदिर को ट्रस्ट घोषित किया गया। ट्रस्ट बनने के बाद मंदिर पर पहंचने के लिए स़डक मार्ग, जीने आदि बनाए गए। इतना ही नहीं मंदिर पर निर्माण होने के साथ ही पेयजल व सामुदायकि भवन आदि के इंतजाम किए। वर्तमान में यहां पर नवरात्र के दौरान हजारों की संख्या में यहां दर्शन करने के लिए भक्तगण पहुंचते हैं। नवरात्र के दौरान छोटी-छोटी कन्याओं से लेकर मातृशक्ति व पुरूष भक्तगण पहुंचते हैं। यहां पर जिले ही नहीं बल्कि राजस्थान सहित दूर-दूर से भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। सिद्धपीठ जालपा माता मंदिर की सिद्धी इतनी है कि जब भी किसी के शादी-विवाह के लिए मुहुर्त नहीं निकलते हैं तो मातारानी के दरबार में पांती रखने के साथ विवाह संपन्न किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां की पांती बिना किसी मुहूर्त का शुभ मुहूर्त होता है। शादी करने के बाद जरूर दोनों पक्षों के लोग दूल्हा-दुल्हन सहित यहां मातारानी के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। इनके अलावा भी जिलेभर से शादियों के दौरान यहां दर्शन करने वालों की भी़ड लगी रहती है।

 

दरगाह शरीफ़ राजगढ़

हज़रत बाबा बदख़्शानी र.अ. के नाम से मशहूर बुज़ूर्ग सूफ़ी (पीरे तरीक़त) जिनका आस्ताना (दरगाह शरीफ़) शहर राजगढ़ तहसील व जिला राजगढ़ मध्यप्रदेश में स्थित है। आपका नाम ’’शाह सैयद क़ुरबान अली शाह बदख़्शानी रहमतुल्लाह अलैह’’ है। आपका जन्म बदख़्शान जो के उस समय ख़ुद मुख़्तार इस्लामी सल्तनत थी (वर्तमान अफ़गानिस्तान में) में सन 1245 हिजरी में हुआ। इसीलिए आप बदख़शानी कहलाए।

दरगाह शरीफ़

सबसे पहले आप सन 1268 हिजरी में दिल्ली तषरीफ़ लाए फिर बरेली पहुंचे।  सन 1297 हिजरी में भोपाल तशरीफ़ लाए।  सन 1301 हिजरी में आप  नरसिंहगढ़ तशरीफ़ लाए। सन 1309 हिजरी में जनाब मुंशी अब्दुल अज़ीज़ साहब मुलाज़ेमत के सिलसिले में राजगढ़ आए तो बाबा साहब को भी अपने साथ राजगढ़ ले आए और अपने मकान के पास एक अलग मकान बाबा साहब के लिए दिया जिसे ख़ानक़ाह बनाया गया। काफी समय तक आपने इसमें ही निवास किया। भोपाल, नरसिंहगढ़ तथा राजगढ़ के निवास के दौरान आपसे कई करामतें ज़ाहिर हुईं जिससे काफी तादाद में लोग इस्लाम में दाख़िल होते रहे। आजीवन आप लोगों को इंसानियत, आपसी भाईचारा, प्रेमभाव तथा दीने हक़ अर्थात सत्य पर चलने की शिक्षा देते रहे।

स्वर्गवास से एक दिन पहले आपने अपने लिए क़बर भी स्वयं तैयार करवाली और मुरीदों को दफ़न-कफ़न के संबंध में समझाइश दी। यह ख़बर सुनते ही शहर के लोगों का हुजूम भारी संख्या में आपके दर्शन के लिए उमड़ पड़ा। सन 1914 ईस्वी में इस्लामी माह रमज़ान मुबारक की 20 तारीख़ को आप इस दुनिया से इन्तेक़ाल फ़रमा गए।
आपकी क़बर मुबारक पर एक दस्तावेज़ के अनुसार 28 अगस्त 1915 को हुए एग्रीमेन्ट के तहत जनाब शैख़ शबराती ठेकेदार के मार्फत रामलाल कुम्हार निवासी बिरजीपुरा तथा ख्वाजू मोमन निवासी गंज राजगढ़ द्वारा आलीशान मक़बरा तैयार किया गया। जो आज भी अपनी पूरी शानो-शोकत के साथ मौजूद है। जिसे दरगाह बाबा बदख़्शानी के नाम से जाना जाता है। बाद में दरगाह के आसपास मस्जिद, सहदरी, मेहमानख़ाना, लंगरख़ाना तथा अन्य इमारतें तामीर कराई गईं।  प्रतिवर्ष 10 से 12 मार्च को दरगाह शरीफ़ पर उर्स का आयोजन किया जाता है। जिसमें देश ही नहीं बल्कि विदेशो से ज़ायरीन आते है। उर्स के दौरान पूरी रात महफ़िले समा अर्थात क़व्वालियों का कार्यक्रम आयोजित होता है जिसमें देश की मशहूर क़व्वाल पार्टियां सूफ़ियाना कलाम पैश करती हैं। साथ ही एक बड़े मेले का भी आयोजन होता है जिसमें हज़ारों की संख्या में दूकाने व मनोरंजन के साधन आते हैं। सभी धर्म तथा समाज के हज़ारों-लाखों लोग बिना किसी भेदभाव के दरगाह पर हाज़िर होते हैं तथा अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। विगत 100 वर्षों से यह स्थान सर्वधर्म सम्भाव तथा साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बना हुआ है।

 

चिड़ीखों -नरसिंहगढ़

चिड़ीखों

नरसिंहगढ़ वाइल्ड लाइफ संचूरी वन प्रभाग राजगढ़ सामाजिक वानिकी के तहत 1978 में स्थापित किया म-प्र का 35 संचूरी है। अभयारण्य NH52 (जबलपुर-जयपुर) भोपाल से 70 किलोमीटर दूर, इंदौर से 221 किलोमीटर, ब्यावरा से 35 किलोमीटर और कोटा से 278 किलोमीटर पर स्थित है।
समुद्र तल से ऊंचाई 462.07-576.08 मीटर है । यह 57.197 वर्ग किमी (रिजर्व वन) क्षेत्र है । अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण यह राजगढ़ जिले की सबसे खूबसूरत जगह में से एक है, यह “कश्मीर मालवा के” क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।

इस अभयारण्य में “चिड़ीखों झील” पर्यटकों के बीच आकर्षण केंद्र है। इस अभयारण्य को शासकों द्वारा शिकार के प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया जाता था । अलग-अलग स्थानों से प्रवासी पक्षी इस अभयारण्य में यहां तक पहुँचते है। स्थानीय लोगों को लिए “चिड़ीखों झील” विशेष झील है। इस अभयारण्य में हम स्थानीय पक्षियों और प्रवासी पक्षियों की एक झलक देख सकते है। राज्य पक्षी दूधराज मुख्य रूप से इस अभयारण्य में यहां देखा जाता है। राष्ट्रीय पक्षी मोर मुख्य रूप से इस अभयारण्य में और आसपास के क्षेत्रों में देखा जाता है। जलवायु राष्ट्रीय पक्षी मोर के लिए उपयुक्त है। इस अभयारण्य के मयूर पार्क क्षेत्र में जंगली जानवरों के लिए पर्याप्त स्थान है बड़ी संख्या में और सांभर में चीतल, नीलगाय मुख्य रूप से पाए जाते हैं। उन्हें स्वतंत्र रूप से इस अभयारण्य में घूमते देख सकते हैं।

कोटरा -नरसिंहगढ़

यह एक बार राजगढ़ राज्य की एक तहसील था। यह नरसिंहगढ़ के दक्षिण से 10 किमी दूर स्थित है। कोटरा एक पहाड़ी स्थान है ओर जंगल घना होने के कारण शेर , चीते तेंदुआ साँभर चीतल हिरण आदि जानवर अधिक संख्या मे पाये जाते है यही कारण है की यह राज्य का एक प्रमुख शिकार का स्थान था । यह जंगल के किनारे कुछ पुराने सिकरगाह (शिकार स्थान) है।

 

खोयरी महादेव मंदिर-राजगढ़

खोयरी महादेव

खोयरी महादेव का एक सुंदर मंदिर राजगढ़ से सिर्फ 1 किलोमीटर दूर है। । यह राजगढ़ की पसंदीदा पिकनिक स्पॉट में से एक है। शिवरात्री पर शहर से भोले बाबा की बारात महादेव मंदिर तक जाती है एवं शिव पार्वती विवाह की रस्म का आयोजन किया जाता है ।

मोहनपुरा डैम राजगढ़

mohanpura dam

मोहनपुरा सिंचाई परियोजना देश की ऐसी पहली ऐसी परियोजना है जिससे प्रेशर से खेतों में सिंचाई की जाएगी। यह देश की पहली लंबी पाइपलाइन है, 3800 करोड़ लागत की इस परियोजना के तहत सबसे लंबी प्रेशरयुक्त पाइप वाली अंडरग्राउंड नहर से 1 लाख 35 हजार हेक्टेयर जमीन में सिंचाई की जाएगी। पहले चरण में कालीपीठ क्षेत्र में 25 हेक्टेयर की पथरीली जमीन में सिंचाई की जाएगी। अन्य क्षेत्रों में अंडरग्राउंड पाइप बिछाने का काम जारी है। मोहनपुरा डैम राजगढ़ से 8 किलोमीटर दूर नेवज नदी पर बनाया गया है। बांध का जलग्रहण क्षेत्र 3726 वर्ग किमी है। मोहनपुरा बांध में सिंचाई, घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए पानी उपलब्ध कराया जाएगा बांध से लगभग 35500 हेक्टेयर खरीफ और 62250 हेक्टेयर रबी मौसम में सिंचाई करना प्रस्तावित है।

अंजनीलाल मंदिर ब्यावरा

आज से करीब 45 वर्ष पूर्व भगवान श्री अंजनीलालजी एक चबूतरे पर नगर से दूर घनी झाडियों के बीच निर्जन क्षेत्र में विराजमान थे। लेकिन सभी के सहयोग से यह निर्जन, वीरान रहने वाला स्थल अब रमणीय स्थल बन गया है। इसे श्री अंजनीलाल मन्दिर समिति द्वारा संचालित किया जाता है। अंजनीलाल मन्दिर धाम अजनार नदी के तट पर दशहरा मैदान के पास स्थित है। श्री अंजनीलाल मन्दिर धाम के प्रवेश स्थल पर एक भव्य एवं विशाल लाल पत्थर पर नक्काशी से युक्त प्रवेश द्वार बनाया गया है। धाम के तीन अतभुत स्तम्भ

anjanilal

• भगवान श्री राम मन्दिर
• निर्माणाधीन भगवान श्री अंजनीलाल मंदिर
• भगवान व्दादशज्योतिर्लिगेश्वर महादेव मन्दिर
श्री अंजनीलाल जी के मंदिर के ठीक सामने ट्रस्ट द्वारा एक भव्य विशाल एवं दर्शनीय मंदिर का निर्माण कराया गया है। जिसमे भगवान श्री राम जी, माता जानकी, श्री लक्ष्मण जी एवं श्री अंजनीलाल जी के साथ विराजमान है। मंदिर की आकृति एक भव्य राज महल के समान है जिसके बाहर एवं अन्दर श्वेत मकराना संगमरमर लगाया गया है। जिसमे कि गई सुन्दर नक्काशी, जालियां, विशाल परदे एवं फानूस मंदिर को आकर्षक रूप प्रदान करते है। भगवान की प्रतिमाएं मनमोहक है। इनके दर्शनों से मन को एक आलौकिक आनंद एवं शांति प्राप्त होती है तथा समस्त संकटो का हरण एवं मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। विशाल सत्संग भवन 100 X 30 फुट का भव्य एवं सुंदर आरसीसी का हाल बनाया गया जिसमे करीब 3000 श्रोता आराम से बैठ कर सत्संग आनंद ले सकते है। इस हाल के साथ ही विद्वानों के आवास व्यवस्था हेतु सर्व सुविधायुक्त 3 कमरों भी निर्माण कराया गया।

कुण्डालिया डेम

kundaliya-dam

मध्यप्रदेश के जिला राजगढ़ एवं जिला आगर-मालवा के बीच कालीसिंध नदी पर कुण्डालिया वृहद सिंचाई परियोजना का निर्माण किया गया है । परियोजना की स्वीकृत लागत रु. 3448.00 करोड़ हैं। इस परियोजना से राजगढ़ जिले के सारंगपुर, खिलचीपुर एवं जीरापुर तथा आगर-मालवा जिले के नलखेड़ा एवं सुसनेर विकास खण्ड में कुल 1,30,639 हेक्टेयर रबी क्षेत्र में नवीन तकनीकी यथा ड्रिप, स्प्रिंकलर आदि से 419 ग्रामों में सिंचाई किया जाना प्रस्तावित हैं। कुण्डालिया बांध का निर्माण कार्य 12/2018 में पूर्ण किया गया हैं। जलाशय के जल निकासी के लिये 12X17 मीटर साईज के 11 नग रेडियल गेट्स का निर्माण किया गया हैं। इस परियोजना से भूमिगत पाईप लाइन बिछाकर कृषक के खेत (एक हेक्टर) तक पाइप प्रणाली से उच्चदाब पर जल प्रदाय कर सूक्ष्म सिंचाई की जावेगी ,आगर-मालवा जिले के सुसनेर तथा नलखेड़ा विकास खण्ड के कुल 146 ग्रामों की 63,548 हेक्टर भूमि , राजगढ़ जिले के जीरापुर तथा सारंगपुर विकास खण्ड के कुल 271 ग्रामों की 67,091 भूमि में सूक्ष्म सिंचाई की जावेगी , निर्माण कार्य के पूर्णता की तिथि 04/2021 नियत हैं।

वेष्णोदेवी मंदिर सुठालिया-ब्यावरा

vaisnodevi

वेष्णोदेवी मंदिर तहसील सुठालिया के निकट मक्सूदनगढ-लटेरी मार्ग पर स्थित है इस मंदिर मे मॉ वेष्णोधाम गुफा का भी निर्माण किया गया है जो कि वैष्णोदेवी मंदिर जम्मू कटरा का आभास कराता है ,यह ब्यावरा ब्लॉक से 26 किलोमीटर दूर है

 

श्री तिरुपति बालाजी मंदिर जीरापुर

तिरुपति बालाजी की महिमा दुनिया भर में है। भारत के दक्षिण में स्थित तिरुपति देव में हर साल लाखों लोग दर्शन करते हैं। जीरापुर से भक्तों में से एक श्री ओम प्रकाश मूंदड़ा और उनकी पत्नी शकुंतला हैं। जब यह जोड़ा तिरुपति बालाजी के दर्शन के लिए पहुंचा, तो उनके दिमाग में एक विचार आया कि क्यों न जीरापुर में भी ऐसा ही भव्य मंदिर बनवाया जाए।
बैकुंठ निवासी स्वर्गीय श्री किशनजी मूंदड़ा और श्री ओ.पी. मूंदड़ा के पिता का सपना था कि जीरापुर में भी ऐसा भव्य मंदिर हो। मूंदड़ा दंपति ने जीरापुर में भव्य मंदिर का निर्माण करने का संकल्प लिया बाद में वे अपने अन्य परिवार के सदस्यों के साथ डीडवाना, (राजस्थान) स्थित झालरिया पीठ गए और श्री 1008 श्री स्वामी श्री घनश्यामचार्यजी महाराज से उनके सपने के बारे में विस्तार से पूछा।
स्वामीजी ने तुरंत इस महान कार्य के लिए अपनी सहमति दे दी। शुरुआत स्वामीजी महाराज के मार्गदर्शन में श्री श्रीधर ज्ञान प्रसार परमार्थिक ट्रस्ट के गठन के साथ हुई थी। तत्पश्चात 3 सितंबर 1998 को जीरापुर में, 25000 लोगों की एक छोटी आबादी वाले शहर मे बालाजी मंदिर की नींव स्वामी श्री घनश्यामचार्यजी महाराज ने रखी थी। मंदिर के निर्माण में लगभग 2 साल लगे। 29 अप्रैल से 4 मई 2000 तक प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित किया गया और व्यंकटेश भगवान बालाजी मंदिर को जनता के लिए खोल दिया गया, और तब से हर दिन 2000-2500 भक्त यहां दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।

भेसवामाता (बीजासन माता) मंदिर -सारंगपुर

bheswamataबीजासन माता मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित होता है, ट्रस्ट के अन्तर्गत 11 शासकीय पदेन सदस्यों में विधायक, जनपद अध्यक्ष, पंचायत अध्यक्ष, तथा सचिव एव 16 अशासकीय सदस्य है । जिसमें ट्रस्ट प्रबंधक कलेक्टर राजगढ़ है , इस मंदिर पर बसंत पंचमी के मौके पर एक माह का पशु मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी करने आते हैं। जहां मेला समिति को पशु मेले से प्रतिवर्ष लाखों रुपए की आय होती है, वही मंदिर दान पेटी से भी हर माह लाखों रुपए मिलते हैं।

माघ मेला :- प्रतिवर्ष माघ माह की बसंत पंचमी से पुर्णीमा तक एवं मेला का समापन पूर्णिमा की रात्री में माँ भैसवामाता (बिजासन माता मंदिर) की पालकी पहाडी के मुख्य मंदिर से ग्राम भैसवामाता के समस्त देवस्थानो पर होते हुए वापस मुख्य मंदिर तक नगर भ्रमण होता है | जिसमे हजारो श्रद्धालु भाग लेते है |
नवरात्री :- चेत्र एवं अश्विन माह में दर्शन एवं चुनर यात्रा

कपिलेश्वर महादेव मंदिर-सारंगपुर

कालीसिंध नदी के बीच में बना कपिलेश्वर महादेव मंदिर अपनी अलौकिकता, प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिकता के लिए प्रसिद्ध और आस्था का केंद्र है।

इसकी विशेषता यह भी है कि नदी की तेज धार और हर साल आने वाली बाढ़ के बीच भी सुरक्षित रहता है , मंदिर वास्तु कला का अनूठा नमूना है। सैकड़ों वर्ष पूर्व बनाए गए इस मंदिर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि बाढ़ का पानी आधे शिखर तक पहुंच जाता है।

मान्यता है कि मंदिर की इस चट्टान पर कपिल मुनि ने तपस्या की थी। उनके द्वारा ही शिवलिंग की स्थापना की गई थी। उनकी कपिला गाय के खुर पंजों के निशान आज भी चट्टान पर मौजूद हैं। मंदिर का जीर्णोद्धार 800 साल पूर्व देवास के महाराजा जीवाजी राव पंवार ने कराया था।

नदी के बीच व श्मशान भूमि के किनारे होने से इस मंदिर में जप और पूजन का महत्व किसी ज्योतिर्लिंगेश्वर से कम नहीं है। यहां कार्तिक की पूर्णिमा से 7 दिवसीय मेला लगता है। यहीं श्री बालाजी व नवग्रहों के साथ शनि मंदिर है। सोमवती तथा शनिश्चरी अमावस्या पर श्रद्धालु पहुंचते हैं।

मेला – उत्सव:- हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर कपिलेश्वर मंदिर के मैदान पर 7 दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है |

शनि मंदिर खिलचीपुर

Shani Templeखिलचीपुर के नाहरदा स्थित परिसर में प्राचीन शनि मंदिर है। यहां जिले के साथ ही आसपास से हजारों लोग दर्शन के लिए आते है। शनिचरी अमावस्या पर जिले के एक मात्र प्राचीन शनि मंदिर पर भक्तों की भीड़ लगी रहती है ।
खिलचीपुर रियासत के महाराजा दीवान उग्रसेन ने पहले खिलचीपुर के गाड्गंगा के तट पर शनिदेव की प्रतिमा स्थापित की राजा उग्रसेन को भगवान शनि देव ने स्वंप्न मे प्रेरणा अनुसार स्वम्भु प्रतिमा गाड्गंगा नदी से निकाल कर नदी के समीप स्थापित की गयी थी किंतु उस समय घना जंगल हुआ करता था जिस मे शेर सहित अन्य खतरनाक जंगली जानवर हुआ करते थे जिस कारण भक्तगनो को आने मे काफी दिक्कते आती थी इस लिये कुछ समय बाद सन 1920 मे खिलचीपुर रियासत के महाराजा बहादुर सरकार दुर्जन लाल सिह जी के द्वारा वर्तमान मे जहा शनि देव विराजमान है उनके द्वारा पुर्ण विधि विधान से स्थापना की गयी तथा शनि मंदिर का निर्माण कार्य कराया गया तब से लेकर आज तक हरियाली अमावस के दिन शनि मंदिर का स्थापना दिवस के रुप मे मनाया जाता है

 

घुरेल पशुपतिनाथ मंदिर ब्यावरा

pasupatinath

एतिहासिक महत्व के पशुपति नाथ घूरेल मंदिर पर प्रति वर्ष सावन सोमवार को भारी भीड़ रहती है , यह मंदिर नगर ब्यावरा और सुठालिया के बीच मे स्थित है , इसकी ब्यावरा से दूरी 15 किलोमीटर है ,मंदिर के पास गुफा भी है , भोलेनाथ की पूजा वर्षो से यहा निरंतर जारी है , पशुपतिनाथ जी की विशालकाय मूर्ति को 1993 मे स्थापित किया गया जो की 7 फीट ऊची है , यहा मकर सक्रांति पर भी मेले मे भीड़ उम्रड्ती है
यहा कावड़ यात्रा नगर में विगत कई वर्षों से हरियाली अमावस पर निकाली जा रही है। इसमें शामिल श्रद्धालु नगर सहित क्षेत्र के कावड़िए सुठालिया स्थित शिवमंदिर पर विश्राम कर सुबह 5 बजे घोघरा घाट स्थित पार्वती नदी से जल भरकर लाते हैं। इसके बाद करीब 16 किलोमीटर दूर घुरेल की पहाड़ी पर स्थित भगवान शंकर की प्रतिमा पर विधिवत पूजन कर पार्वती नदी के जल से अभिषेक करते हैं।
कावड़िए बाबा भोलेनाथ के जयकारों के साथ नगर के प्रमुख मार्ग परलापुरा राम मंदिर, सदर बाजार शिव मंदिर, ब्यावरा रोड होते हुए घुरेल पशुपतिनाथ मंदिर पहुचते है । जहां भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जाता है । इस यात्रा में शामिल लोगों का जगह-जगह फल, खीर, साबूदाने की खिचड़ी आदि से नगर वासियों ने स्वागत किया जाता है ।

श्रीनाथजी का बडा मंदिर राजगढ़

Shrinathji

अति प्राचीन एवं भव्यता के लिए प्रसिद्ध नेवज नदी के तट पर पहाड़ियों के बीच श्रीनाथजी का बड़ा मंदिर स्थित हैं। नगर की पहचान स्थापित करने वाले इस भव्य मंदिर की शिल्पकला अति सुन्दर है, जिसकी छटा देखते ही बनती है। नदी के तट पर स्थित होने से वर्षा ऋतु में नदी का जल स्तर बढने पर मंदिर का गर्भग्रह जलमग्न हो जाता हैं।राजगढ़ रियासत की तत्कालीन हाडी जी महारानी को स्वप्न में भव्य श्रीनाथ जी के मंदिर बनवाने की प्रेरणा स्वरूप तत्कालीन राजा बलबाहदुर सिंह जी ने वर्ष 1887 में मंदिर का निमार्ण प्रारम्भ करवाया, मंदिर के निमार्ण में उस समय 24 वर्ष का समय लगा , निर्माण कार्य पूर्ण होने पर तत्कालीन राजा बनेसिंह जी ने वर्ष 1911 के जेयष्ठ मास की दसमी ‘‘गंगा दशहरा‘‘ के दिन शुभ मुर्हत में पुष्टिमार्गीय परम्परा के अनुसार प्रभु श्रीनाथ जी के अतिसुन्दर विग्रह (मूर्ति) की स्थापना की गई। प्रतिवर्ष गंगा दसमी को मन्दिर का पाटोत्सव (स्थापना दिवस) मनाया जाता हैं। वर्ष 1911 से सतत् रूप से मन्दिर में प्रभु की अष्टयाम सेवा दर्शन का क्रंम जारी है। प्रति दिन प्रातः मंगला आरती 8.30 श्रंगार दर्शन 9.15 तथा राजभोग दर्शन 10.15 तथा सायंकाल 6.15 पर उत्थापन 6.30 पर संध्या भोग एवं 7.00 पर शयन दर्शन होते हैं।
वर्ष के उत्सव एवं त्यौहारः- कृष्ण जन्माष्टमी, नन्दमहोत्सव, नोकाविहार, रामनवमी, होली फूलफाग, अन्नकुट महोत्सव, श्रावणमास, हिन्डोला उत्सव आदि धूम-धाम से मनाये जाते हैं।
यह मंदिर नेवज नदी के तट पर प्रदेष के सबसे ऊँचे (111 फीट) शिखर वाला मंदिर हैं। संध्या के समय मंदिर के शिखर पर रोमाचंक द्र्शय देखने को मिलता है, दरअसल नदी में अपनी प्यास बुझाने वाले सेकड़ो कबुतर एक झुन्ड होकर मंदिर के शिखर के आसपास परिक्रमा करते देखे जा सकते हैं। पक्षियों को देख कर ऐसा लगता है कि पक्षी भी भगवान की परिक्रमा कर पुण्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं। इस द्र्शय को देखने सेकड़ों लोग सायंकाल मंदिर पहुचते है तथा प्रभु श्रीनाथ जी के दर्शन लाभ भी लेते है। मंदिर 100 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है मंदिर का जिला प्रशासन द्वारा पूर्ण देख-रेख करने एवं समय-समय पर मरम्मत/जीर्णोव्दार कार्य कराये जाने से मंदिर की इमारत आज भी नवीनतम प्रतीत होती है।

Tourist places

पर्यटन स्थल जिला राजगढ़

tourist-places

पर्यटन स्थल जिला राजगढ़